Monday, August 17, 2015

ज़रुरत का क्या है


भविष्य ने बुलाया था तुम्हें
तरक्की ने रास्ता निहारा था
तुम्हारी अपनी ज़रूरतें थीं
हमेशा अपनी सहूलियतें
सब चुना अपनी मर्ज़ी से
आज भी और कल भी
अब लौट आये हो फिर
इस उम्मीद पे
मैं तो मिलूंगी
वहीं खड़ी इंतज़ार में
बड़ी देर इंतज़ार किया था
तुम जाते वक़्त
कह नहीं गए थे
वापस आओगे
तब भी ……
पर ,देर कर दी यार तुमने
अभी तक तुमने जो चाहा किया
अबकि मैंने तुमसे ये सीख लिया
जो दिल ने चाहा वो चुना
तुम्हें छोड़ अपनी खुद्दारी चुनी
वैसे भी तुम्हारा तो कोई पता नहीं
आज लौटे हो कल फिर चल दो कहीं
प्यार तो मुझसे था नहीं कभी
और ज़रुरत का क्या है
वो तो बदल जाती हैं
लोगों की … आय दिन ही

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