Thursday, October 27, 2011

रूटीन


वही सुबह,वही रातें...
वही दोपहर ,वही शामें....
कुछ भी अलग नहीं...
जीवन के ये दिन......
बस यूँ ही....
बीतते जाते हैं.

बोझल बातें हैं....
बेबस सांसें हैं .....
रुकी-रुकी धडकनें....
थमी-थमी मुस्कुराहटें....

"तुम" आ जाओ ,न ........
तुम्हारी बातों का इन्द्रधनुष
मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भरता है .
तेरा हर बात पे कहना ,"पता नहीं "..."कुछ नहीं "
नीरस जीवन में जैसे रस भरता है .
आओ, कि..कुछ तो हो...
रूटीन से हट कर .

20 comments:

  1. कितनी शिद्दत से पुकारा है अब कोई कैसे रुक सकता है।

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  2. रूटीन से हटकर कुछ होना ज़रूरी भी है।

    आपको सपरिवार दीप पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    -----
    कभी यहाँ भी पधारें

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  3. बहुत ही उम्दा ... तुम तो हो रूटीन से हटकर

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  4. उबाऊ,नीरस,आत्‍मघातक रुटीन को तोड़ ही दिया जाना चाहिए. किसी के आने का इंतज़ार न करें,यह काम खुद ही करना होता है...

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  5. निधि जी, बहुत ही सुंदर अंदाज-ए-बयां है आपका, आपकी पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है !

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  6. sach nidhi ji aapki lekhni bhi hain kuch hat kar.... aabhar

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  7. बहुत सुन्दर!! अन्य रचनाएँ भी अच्छी लगीं, उनमें 'कौन हूँ मैं' और ' प्रेम का तावीज' सुन्दर हैं.

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com (हिंदी कवितायेँ)
    www.santoshspeaks.blogspot.com

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  8. रूटीन से हटकर अच्छा लगता है.
    सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.

    गोवर्धन ,भैय्या दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    इंतजार है आपका, निधि जी.

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  9. वन्दना....आपकी बात सच हो जाए............काश!!

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  10. यशवंत...हाँ,कभी कभार...रूटीन से हटकर कुछ होना अच्छा लगता है

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  11. रश्मिप्रभा जी ...शुक्रिया!!

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  12. राहगीर जी...यह काम खुद ही करना होता है पर कुछ लोग आ जाएँ तो सब कुछ रंगीन हो जाता है

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  13. स्कोर्लेओ....बहुत बहुत आभार,आपका .

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  14. प्रियंका....तहे दिल से शुक्रिया!!

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  15. संतोष जी...हार्दिक धन्यवाद...रचनाओं को पढ़ने एवं सराहने हेतु

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  16. राकेश जी ...थैंक्स!!आपके ब्लॉग पर कथनानुसार अवश्य आउंगी .

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  17. aapki lekhni ko naman ..............

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  18. सुनील जी ............धन्यवाद! !

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  19. बेहद उम्दा ! निधि ...एक बार फिर मेरी ही बात ....शब्द तुम्हारे हैं तो क्या ?

    कभी तो होता कि उनकी हर बात पे
    हम कहते ,"पता नहीं"..कुछ नहीं"..
    उनके जीवन में भी वही रंग घुलते
    जिनसे हम हज़ार बार नहाये हैं ..
    कभी तो वो भी कहते ....
    "तुम" आ जाओ न .....
    ये भी तो कुछ होता न
    "रूटीन" से हटकर .........

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  20. तुलिका...क्यूँ यह ज़िंदगी इसी काश के सहारे कटती है कि ..कभी यह हो जाता ....कभी वो यह कह देता ..आपके शब्दों का जादू भी कम नहीं है ,तुलिका....इसीलिए आपकी प्रतिक्रया का इंतज़ार रहता है .

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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