Wednesday, March 16, 2011

तुम्हारी............


तुम्हारी  चुप्पी .....जैसे  दिल  की  धड़कन  रुक  सी  गयी  हो
तुम्हारी  बेरुखी .......जैसे  सूरज  को  ग्रहण  लग  गया  हो .
तुम्हारी  नाराजगी .........जैसे  मुँह कसैला  सा  हो  जाए .
तुम्हारी  याद ............एक  एहसास  की  सब  कुछ  ठीक  है .

6 comments:

  1. आपकी इस बेहद संवेदनशील कविता पर अपने दो शेर याद आ गए ...
    ....

    उससे कह दो कि अब चुप भी रहे
    ये खामोशी बहुत शोर करती है
    ………………
    इससे बेहतर कि कुछ कह देता
    चुप रह कर जो वह सुनाता रहा

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  2. अमित.........आपके इन दो खूबसूरत शेरों के आगे मैं क्या लिखूं??ये चुप रह कर जब कोई सुनाता है तो झेलना बेहद मुश्किल हो जाता है ,न?

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  3. @ निधि ........तुम्हारी कवितायें मेरे लिये बड़ी परेशानी का सबब होतीं हैं.....क्योंकि वो मुझे दिल के उन गोशों में ले जातीं हैं जहां जाना मेरे लिये बड़ी तकलीफ़ का बाईस होता है !!!......वो ख़यालात....वो कैफ़ियत.....वो सोच जिनका सामना मैं करना नहीं चाहती ...वो जाने कहाँ से खुद- ब- खुद मेरे सामने आ कर खड़े हो जाते हैं ......मानो मुहं चिढ़ा कर कह रहे हों .... " लो अब कहाँ तक भागोगी हमसे ? ".....सच कहा है तुमने ....
    " तुम्हारी चुप्पी ...जैसे दिल की धड़कन रुक सी गयी हो !
    तुम्हारी बेरुखी ....जैसे सूरज को ग्रहण लग गया हो !......"
    हाँ यूँ ही लगता है....जब बहुत सी खामोशियाँ हो जातीं हैं यक्जां......एक ग़ज़ल याद आ रही है.....
    " फिर से वही मंज़र पसे - मंज़र से निकालो ;
    डूबे हुए सूरज को समंदर से निकालो !
    अब चाहे मोहब्बत का वो ज़ज्बा हो कि नफरत ;
    जो दिल में छुपा है उसे अन्दर से निकालो !
    मैं कब से सदा बनके यहाँ गूँज रहा हूँ ;
    अब तो मुझे इस गुम्बदे - बेदर से निकालो !
    वो दर्द भरी चीख मैं भूला नहीं अब तक ;
    कहता था कोई बुत मुझे पत्थर से निकालो !
    ये शख्स हमें चैन से रहने नहीं देगा ;
    तन्हाईयाँ कहतीं हैं इसे घर से निकालो !!! "

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    1. खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए,शुक्रिया!

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  4. आपकी हर अदा निराली है..

    बहुत खूब..

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    1. पसंद करने और सराहने के लिए.....थैंक्स!

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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